Doctor’s Advice
मोबाइल स्क्रीन की रोशनी, देर रात तक पढ़ाई या गेमिंग, और सोशल मीडिया पर घंटों स्क्रॉलिंग… ये सब मिलकर आज के किशोरों की नींद चुरा रहे हैं . नतीजा— सुबह थकान, दिन में चिड़चिड़ापन और पढ़ाई में ध्यान की कमी . विशेषज्ञों का कहना है कि नींद की यह कमी अब सिर्फ़ एक आदत नहीं रही, बल्कि गंभीर स्लीप डिसऑर्डर का रूप ले रही है .
Expert Advice: Teenagers And Sexual health चुप्पी क्यों है खतरनाक?
रातें जागकर बीतती हैं
स्लीप एक्सपर्ट डॉ. रश्मि अरोड़ा कहती हैं, “किशोरों को औसतन 8-10 घंटे की नींद की जरूरत होती है, लेकिन आज अधिकांश सिर्फ 5-6 घंटे ही सो पा रहे हैं . नीली स्क्रीन की रोशनी (ब्लू लाइट) मेलाटोनिन हार्मोन को दबाती है, जिससे दिमाग को ‘सोने का समय’ होने का सिग्नल देर से मिलता है .”
नींद की कमी का असर
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न्यूरो-साइकोलॉजिस्ट डॉ. विनय त्रिपाठी के अनुसार, “नींद पूरी न होने से दिमाग की कार्यक्षमता घटती है . किशोरों में एकाग्रता में कमी, मूड स्विंग, गुस्सा और कभी-कभी अवसाद जैसी समस्याएं देखी जाती हैं . लंबे समय तक यह पैटर्न बने रहने पर हार्मोनल बैलेंस भी बिगड़ सकता है .”
लेट नाइट कल्चर का बढ़ता दबाव
ऑनलाइन क्लासेस, ग्लोबल टाइम ज़ोन वाले गेम्स, और सोशल मीडिया ट्रेंड्स ने देर रात तक जागना ‘नॉर्मल’ बना दिया है . माता-पिता भी कई बार बच्चों की पढ़ाई के लिए देर रात जागने को ‘मेहनत’ समझते हैं, जबकि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है .

क्या है समाधान?
- सोने से कम से कम 1 घंटे पहले स्क्रीन से दूरी
- हर दिन एक तय समय पर सोने-जागने की आदत
- कैफीन और एनर्जी ड्रिंक का सेवन कम करना
- दिन में हल्का व्यायाम और मेडिटेशन
डॉ. अरोड़ा कहती हैं, “नींद को विलासिता नहीं, जरूरत समझें . अच्छी नींद ही अच्छे दिमाग और स्वस्थ शरीर की बुनियाद है .”
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