जेंडर डिस्फोरिया और पहचान से जुड़ी उलझन पर विशेषज्ञों की राय
किशोरावस्था वैसे ही जीवन का सबसे उलझा हुआ दौर होती है. शारीरिक बदलाव, भावनात्मक उथल-पुथल और समाज की अपेक्षाएं. लेकिन जब कोई किशोर अपनी लिंग पहचान (Gender Identity) को लेकर असमंजस महसूस करता है, तो यह यात्रा और भी जटिल हो जाती है.
जेंडर डिस्फोरिया क्या है?
जेंडर डिस्फोरिया वह मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति का जन्म के समय निर्धारित लिंग (Sex Assigned at Birth) और उसकी आंतरिक लिंग पहचान (Gender Identity) मेल नहीं खाती. इससे गहरी मानसिक असहजता, तनाव, चिंता और अवसाद हो सकता है.
उदाहरण के लिए, अगर किसी का जन्म के समय लिंग “पुरुष” तय किया गया हो, लेकिन वह खुद को भीतर से “महिला” या “नॉन-बाइनरी” महसूस करे, तो यह स्थिति जेंडर डिस्फोरिया हो सकती है.
मानसिक प्रभाव
- अवसाद और चिंता – पहचान को लेकर समाज से अस्वीकृति और पारिवारिक दबाव के कारण.
- लो सेल्फ-एस्टीम – खुद को स्वीकार न कर पाने या असली पहचान छुपाने से.
- सोशल आइसोलेशन – दोस्तों या परिवार से दूरी, अकेलापन.
- सेल्फ-हार्म का खतरा – लगातार मानसिक तनाव के चलते.
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
Teenagers की हड्डियों को चाहिए खास ध्यान: क्यों और कैसे?
डॉ. आकांक्षा शर्मा , क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट, इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज (IHBAS), दिल्ली
“किशोरावस्था में जेंडर आइडेंटिटी को लेकर सवाल आना बिल्कुल सामान्य है. लेकिन अगर असहजता लंबे समय तक बनी रहे और रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित होने लगे, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की मदद जरूरी है. समय पर काउंसलिंग से चिंता, अवसाद और आत्मघाती विचारों से बचाव हो सकता है.”
आरव मेहता , LGBTQ+ काउंसलर, नाज़ फाउंडेशन, नई दिल्ली
“सबसे जरूरी है — सुरक्षित और स्वीकार करने वाला माहौल. जब परिवार सुनने, समझने और स्वीकारने को तैयार होता है, तो किशोर अपनी पहचान को लेकर खुलकर बात कर पाते हैं. सपोर्ट ग्रुप और कम्युनिटी स्पेस उन्हें यह भरोसा देते हैं कि वे अकेले नहीं हैं.”

मदद कहां मिल सकती है?
- नाज़ फाउंडेशन, दिल्ली – LGBTQ+ सपोर्ट और काउंसलिंग.
- द हमसफर ट्रस्ट, मुंबई – मानसिक स्वास्थ्य, कानूनी सलाह और हेल्पलाइन.
- इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज (IHBAS), दिल्ली – चाइल्ड एवं एडोलसेंट साइकोलॉजी विभाग.
- Queer Affirmative Counselling Practice (QACP) नेटवर्क – पैन-इंडिया ऑनलाइन काउंसलिंग. माता-पिता और शिक्षकों के लिए सुझाव सुनें, टोकें नहीं – सवालों को दबाने से कन्फ्यूज़न और बढ़ता है.
सही जानकारी दें – किताबें, डॉक्यूमेंट्री, वैज्ञानिक संसाधनों का सहारा लें.
जजमेंट-फ्री स्पेस बनाएं – घर और स्कूल में.
मानसिक स्वास्थ्य सहायता – पेशेवर काउंसलिंग को सामान्य मानें.
जेंडर आइडेंटिटी की खोज हर व्यक्ति के लिए निजी और अनूठी यात्रा है. किशोरों के लिए यह सफर अगर समाज, परिवार और स्कूल की समझदारी भरी मदद से तय हो, तो वे न केवल अपनी पहचान को स्वीकारते हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी सशक्त बनते हैं.
Leave a Reply