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Parenting Advice: Teenager के लिए कैसी होनी चाहिए आपकी पैरेंटिंग?

Teenage (13 से 19 वर्ष की उम्र) वह समय होता है जब बच्चों में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक कई बड़े बदलाव आते हैं. यह उम्र जिज्ञासा, आत्म-खोज और स्वतंत्रता की चाह से भरी होती है इस समय बच्चों को सही दिशा देना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि छोटी-सी चूक भी बड़े परिणाम ला सकती है ऐसे में अभिभावकों की भूमिका बेहद अहम होती है आइए समझते हैं कि टीनएजर्स के मन में क्या चलता है और पैरेंटिंग कैसी होनी चाहिए 

समझें टीनएजर्स के मन की बातें:

  • • स्वतंत्रता की चाह: टीनएजर्स अपने फैसले खुद लेना चाहते हैं और हर बात में स्वतंत्रता की तलाश करते हैं
  • • पहचान की खोज: वे खुद को, अपनी पसंद-नापसंद और जीवन के लक्ष्य को पहचानने की कोशिश कर रहे होते हैं
  • • भावनात्मक उतार-चढ़ाव: हार्मोनल बदलावों के कारण वे अक्सर चिड़चिड़े या संवेदनशील हो सकते हैं
  • • साथियों का प्रभाव: दोस्तों का असर बहुत ज़्यादा होता है; वे अक्सर साथियों की राय को ज्यादा महत्व देते हैं
  • • प्राइवेसी की मांग: उन्हें अपनी व्यक्तिगत सीमाएं चाहिए होती हैं; हर बात शेयर करना जरूरी नहीं समझते

टीनएजर्स के लिए कैसी होनी चाहिए आपकी पैरेंटिंग:

  • • सुनना सीखें: डाँटना नहीं, पहले उनकी बात को पूरी तरह सुनें और समझें
  • • विश्वास बनाए रखें: उन पर भरोसा जताएं ताकि वे भी आपसे खुलकर बात करें
  • • सीमा तय करें लेकिन ज़ोर जबरदस्ती न करें: नियम ज़रूरी हैं लेकिन उन्हें समझाकर लागू करें
  • • इमोशनल सपोर्ट दें: उन्हें यह एहसास दिलाएं कि आप हमेशा उनके साथ हैं, चाहे कुछ भी हो
  • • रोल मॉडल बनें: जैसा व्यवहार आप उनसे चाहते हैं, वैसा खुद करके दिखाएं

क्या करें (Do’s):

  • • खुलकर संवाद करें, बिना जज किए
  • • उनकी उपलब्धियों की तारीफ करें
  • • उन्हें उनके फैसलों में शामिल करें
  • • समय-समय पर परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं
  • • उनकी रुचियों और शौक़ों को बढ़ावा दें

क्या न करें (Don’ts):

  • • हर समय कंट्रोल करने की कोशिश न करें
  • • उनकी तुलना दूसरों से न करें – इससे आत्मविश्वास घटता है
  • • उनकी प्राइवेसी में अनावश्यक दखल न दें
  • • उन्हें डिप्रेशन, स्ट्रेस या बदलावों के लिए दोष न दें
  • • यह न मानें कि वे बच्चे हैं और कुछ नहीं समझते

डॉ. नीलिमा शर्मा, किशोर मनोविज्ञान विशेषज्ञ (Child & Adolescent Psychologist), कहती हैं:

“टीनएजर्स के साथ संवाद का तरीका पारंपरिक ‘आदेश’ वाले नहीं, बल्कि सहयोगी और सहानुभूति से भराहोना चाहिए  जब बच्चे यह महसूस करते हैं कि उनके पैरेंट्स उन्हें सुनते हैं और समझते हैं, तो वे ज्यादासंतुलित, जिम्मेदार और आत्मविश्वासी बनते हैं. माता पिता को चाहिए कि वे बच्चों की भावनाओं को हल्के मेंन लें, बल्कि उन्हें गंभीरता से सुनें और साथ मिलकर समाधान निकालें”

टीनएज एक संवेदनशील दौर है, जहां बच्चे न तो पूरी तरह बच्चे होते हैं और न ही पूरी तरह बड़े। उन्हें समझना, उन्हें स्वीकारना और उन्हें सही दिशा में धीरे-धीरे मार्गदर्शन देना ही प्रभावशाली पैरेंटिंग की कुंजी है. 

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