क्या हैं Live in Relationship? युवाओं के लिए इसकी परिभाषा से समाज क्यों है परे?
Relationship Tips लिव-इन रिलेशनशिप(Live in Relationship) का तात्पर्य है जब एक अविवाहित जोड़ा, बिना विवाह किए, एक साथ सहमति से एक ही घर में साथ रहते हैं जैसे पति-पत्नी रहते हैं यह रिश्ता पूरी तरह परस्पर सहमति पर आधारित होता है, जहां दोनों पार्टनर एक-दूसरे के साथ समय बिताने, एक-दूसरे को समझने और भावनात्मक एवं भौतिक समर्थन देने के लिए साथ रहते हैं
युवाओं के लिए क्यों है लिव-इन रिलेशनशिप (Live in Relationship) एक पसंदीदा विकल्प?
आज की पीढ़ी अधिक स्वतंत्र विचारों वाली है और रिश्तों को लेकर उनकी समझ भी परिपक्व होती जा रही है विवाह से पहले एक-दूसरे को समझना, अनुकूलता की जांच करना और निजी स्पेस की आवश्यकता के चलते लिव-इन रिलेशनशिप युवाओं के बीच लोकप्रिय हो रही है यह उन्हें बिना सामाजिक या कानूनी दबाव के एक-दूसरे को समझने का अवसर देती है.
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समाज क्यों है इससे परे?
भारतीय समाज अब भी पारंपरिक मूल्यों से जुड़ा हुआ है, जहां विवाह को ही एकमात्र वैध रिश्ता माना जाता है लिव-इन रिलेशनशिप को अक्सर ‘अनैतिक’, ‘पश्चिमी प्रभाव’ या ‘परिवार विघटन’ से जोड़कर देखा जाता है कई बार लड़कियों के परिवार विशेष रूप से इसे लेकर चिंतित होते हैं, क्योंकि इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पर असर पड़ सकता है
लिव-इन रिलेशनशिप से पहले उठाए जाने वाले ज़रूरी कदम:
1. स्पष्ट सहमति और संवाद: यह सुनिश्चित करें कि दोनों पक्ष रिश्ते को लेकर स्पष्ट हैं और समान अपेक्षाएं रखते हैं
2. आर्थिक समझौता: किराया, खर्च, जिम्मेदारियां आदि को लेकर पहले से योजना बनाना जरूरी है
3. सीमाएं तय करना: व्यक्तिगत स्पेस, करियर, दोस्ती आदि से जुड़े मामलों में स्पष्ट सीमाएं तय करें
4. परिवार को सूचित करना (यदि संभव हो): यदि आप परिवार से खुले विचार रखते हैं, तो उनकी जानकारी रखना बेहतर हो सकता है
5. आपसी सम्मान और भरोसा: लिव-इन का रिश्ता बिना भरोसे और सम्मान के नहीं टिक सकता
क्या हैं इसके फायदे?
1. एक-दूसरे को समझने का मौका: शादी से पहले पार्टनर को करीब से जानने और समझने का समय मिलता है, जिससे बेहतर निर्णय लिया जा सकता है
2. स्वतंत्रता और निजी स्पेस: दोनों को अपने करियर, पसंद और निजी समय को बनाए रखने की आज़ादी होती है
3. कम सामाजिक और आर्थिक दबाव: शादी से जुड़े सामाजिक रस्मों और खर्चों से बचा जा सकता है
4. ब्रेकअप की सुविधा: अगर रिश्ता काम नहीं करता, तो इसे बिना कानूनी प्रक्रिया के खत्म किया जा सकता है
5. कानूनी सुरक्षा: घरेलू हिंसा कानून और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार, महिलाओं को लिव-इन में कुछ कानूनी अधिकार प्राप्त हैं
क्या हैं इसके नुकसान?
1. सामाजिक अस्वीकार्यता: पारंपरिक सोच वाले समाज और परिवार इसे स्वीकार नहीं करते, जिससे मानसिक दबाव उत्पन्न हो सकता है
2. भावनात्मक अस्थिरता: ब्रेकअप की स्थिति में कानूनी बंधन न होने के कारण भावनात्मक चोट अधिक गहरी हो सकती है
3. भविष्य की अनिश्चितता: यदि दोनों पार्टनर का लक्ष्य अलग हो (जैसे शादी करना या न करना), तो रिश्ता भ्रमित हो सकता है
4. बच्चों के लिए जटिलताएं: यदि इस रिश्ते से संतान होती है, तो उनके सामाजिक और कानूनी अधिकारों को लेकर सवाल उठ सकते हैं
सही पार्टनर की करें पहचान:
लिव-इन में जाने से पहले यह समझना जरूरी है कि आप जिससे साथ रहना चाहते हैं, वह मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से परिपक्व है या नहीं कुछ संकेत जो सही पार्टनर की पहचान में मदद कर सकते हैं:
• क्या वह आपकी स्वतंत्रता का सम्मान करता है?
• क्या वह तनाव या बहस के समय संयम बनाए रखता है?
• क्या आपके जीवन के उद्देश्य मिलते-जुलते हैं?
• क्या वह निर्णयों में बराबरी की भूमिका निभाता है?

इस पर क्या हैं कानूनी गाइडलाइंस?
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता प्राप्त है, बशर्ते दोनों पार्टनर बालिग हों और अपनी मर्जी से साथ रह रहे हों सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार यह स्पष्ट किया है कि दो वयस्कों का साथ रहना अपराध नहीं है.
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के अंतर्गत महिला पार्टनर को अधिकार दिए गए हैं, जिससे वह सुरक्षा, भरण-पोषण और निवास का दावा कर सकती हैं
हालांकि, बच्चे यदि इस रिश्ते से जन्म लेते हैं, तो उन्हें वैध संतान माना जाता है और वे संपत्ति के अधिकार के पात्र होते हैं (विशेषकर मां की संपत्ति पर)
लिव-इन रिलेशनशिप आधुनिक युवाओं के लिए एक प्रयोगात्मक लेकिन जिम्मेदार रिश्ता हो सकता है, यदि इसे समझदारी, स्पष्टता और सम्मान से निभाया जाए। समाज का नजरिया धीरे-धीरे बदल रहा है, लेकिन कानून पहले से ही इसके पक्ष में हैं इस रिश्ते में जाने से पहले उचित समझदारी और तैयारी आवश्यक है
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