रिश्तों में बदलाव और आधुनिक दौर
समाज बदल रहा है तो रिश्तों की परिभाषा भी बदल रही है. पहले जहां शादी को ही स्थायी रिश्ते का आधार माना जाता था, वहीं अब युवा पीढ़ी नए विकल्पों और सोच के साथ आगे बढ़ रही है. परिवारों के नज़रिए, कामकाज की जिम्मेदारियों और करियर से जुड़े फैसलों पर भी अब पुरानी धारणाएं टूट रही हैं.
लिव-इन बनाम शादी – परिवार के नजरिये में बदलाव
- पहले लिव-इन रिलेशनशिप को सामाजिक स्वीकृति नहीं थी, लेकिन अब महानगरों और शिक्षित वर्ग में इसे धीरे-धीरे स्वीकार किया जाने लगा है.
- शादी और लिव-इन को लेकर पीढ़ियों के बीच सोच का अंतर साफ दिखता है.
- विशेषज्ञों के अनुसार, “युवा सुरक्षा और समझ की तलाश में हैं, जबकि परिवार अब भी स्थिरता और परंपरा को अहम मानता है.”
👉 सोशियोलॉजिस्ट डॉ. कविता शुक्ला कहती हैं:
“लिव-इन को लेकर समाज अब पहले से अधिक सहिष्णु हो रहा है, लेकिन ग्रामीण और पारंपरिक तबकों में शादी अभी भी रिश्ते की ‘वैध’ पहचान मानी जाती है.”
घर में कामकाज का बंटवारा – जेंडर रोल्स पर नई सोच
- आधुनिक दौर में महिलाएं केवल गृहिणी की भूमिका तक सीमित नहीं हैं.
- घर के काम और बच्चों की जिम्मेदारी अब पति-पत्नी दोनों साझा करने लगे हैं.
- कई युवा दंपति ‘इक्वल पार्टनरशिप’ को रिश्ते का आधार मानते हैं, जबकि बुजुर्ग पीढ़ी अब भी पारंपरिक भूमिकाओं को प्राथमिकता देती है.
- इससे घर के अंदर नए तरह का संवाद और संघर्ष दोनों देखने को मिलते हैं.
👉 फैमिली काउंसलर सुनीता माथुर का मानना है:
“जब दंपति घर के कामकाज और जिम्मेदारियां बराबर बांटते हैं तो रिश्ते में सम्मान और भरोसा दोनों मजबूत होते हैं.”
पति या पत्नी के करियर फैसलों पर परिवार का असर
- करियर को लेकर पहले परिवार का सीधा नियंत्रण ज्यादा होता था, पर अब युवा अपने फैसले खुद लेना चाहते हैं.
- शादी के बाद पति-पत्नी दोनों के करियर को समान महत्व देने का ट्रेंड बढ़ रहा है.
- लेकिन कई बार बच्चों की परवरिश या बुजुर्गों की देखभाल जैसे मुद्दों पर परिवार की अपेक्षाएं करियर को प्रभावित करती हैं.
- इस वजह से कई दंपति को कंप्रोमाइज या रिलोकेशन जैसे कठिन फैसले लेने पड़ते हैं.

👉 क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. आलोक वर्मा कहते हैं:
“करियर के फैसलों में परिवार का दबाव अक्सर तनाव पैदा करता है. ऐसे में कपल को स्पष्ट संवाद और आपसी सहमति से निर्णय लेना चाहिए, वरना यह रिश्ते में खटास ला सकता है.”
मध्यमवर्गीय परिवारों में तनाव के कारण – नौकरी, महंगाई और बच्चों की शिक्षा
- बढ़ती महंगाई, अस्थिर नौकरी और महंगे स्कूल-कॉलेज की फीस मध्यमवर्गीय परिवारों पर दबाव डाल रही है.
- इन आर्थिक कारणों का सीधा असर पति-पत्नी के रिश्ते और घर के माहौल पर पड़ता है.
- तनाव, झगड़े और संवाद की कमी आधुनिक मध्यमवर्गीय परिवार की सबसे बड़ी चुनौतियों में से हैं.
- विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर परिवार में खुलकर बातचीत और वित्तीय प्लानिंग की आदत हो तो तनाव काफी हद तक कम किया जा सकता है.
👉 सोशियोलॉजिस्ट प्रो. आर. के. मिश्रा बताते हैं:
“भारतीय मध्यमवर्ग आर्थिक दबाव और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच फंसा हुआ है. यही कारण है कि मानसिक तनाव और वैवाहिक विवाद यहां सबसे ज्यादा देखने को मिलते हैं.”
आधुनिक दौर में रिश्तों की परिभाषा लचीली और बहुआयामी हो गई है. जहां एक ओर युवा समानता और स्वतंत्रता को महत्व देते हैं, वहीं परिवार स्थिरता और परंपराओं को सुरक्षित रखना चाहते हैं. इस खींचतान के बीच समझ, संवाद और लचीलापन ही रिश्तों को मज़बूत बनाने की कुंजी है.
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