आज जब भारत में फुटबॉल की बात होती है, तो अधिकतर लोग सिर्फ़ यूरोप के क्लब्स, फीफा वर्ल्ड कप या मेसी-रोनाल्डो जैसे नामों की बात करते है. मगर बहुत से लोग शायद ये नहीं जानते कि एक समय ऐसा भी था जब भारतीय फुटबॉल पूरे एशिया में छाया हुआ था. ये दौर था 1951 से 1962 का, जिसे भारतीय फुटबॉल का Golden Era कहा जाता है. इस समय भारत ने कई बड़े टूर्नामेंट जीते और हमे एशिया की सबसे मजबूत टीमों में गिना जाने लगा. आए जानते है इस गोल्डन एरा की सबसे अहम उपलब्धियां के बारे में:
Asian games 1951 – पहली बार जीता गोल्ड मेडल
फाइनल: भारत बनाम ईरान
नतीजा: भारत 1 – 0 ईरान
दिल्ली में हुए पहले एशियन गेम्स में भारत ने इतिहास रच दिया. फाइनल मुकाबले में भारत ने ईरान को 1-0 से हराया, और ये गोल किया साहू मेवालाल ने. खास बात ये रही कि भारत ने पूरे टूर्नामेंट में एक भी गोल नहीं खाया — मतलब सभी मैच क्लीन शीट्स के साथ जीते. Untold Story: जब सचिन तेंदुलकर ने पाकिस्तान के लिए खेला मैच
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Melbourne Olympics 1956 – सेमीफाइनल तक पहुचा भारत
Quarter Final: India vs Australia
नतीजा: भारत 4 – 0 ऑस्ट्रेलिया
भारत ने ऑस्ट्रेलिया को उसके ही घर में हरा कर सीधे सेमीफाइनल में एंट्री मारी. नेविल डी’सूज़ा ने हैट्रिक मार कर इतिहास रच दिया. वे पहले एशियाई खिलाड़ी बने जिन्होंने ओलंपिक फुटबॉल में हैट्रिक स्कोर की.
हालांकि भारत फाइनल में नहीं पहुंच सका, लेकिन ओलंपिक सेमीफाइनल तक पहुंचना — आज भी भारत का सबसे बड़ा International Football Achievement माना जाता है.
Asian Games 1962 – मुश्किल हालातो में भारत ने जीता गोल्ड
फाइनल: भारत बनाम साउथ कोरिया
नतीजा: भारत 2 – 1 कोरिया
इस टूर्नामेंट की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं थी. आर्थिक दिक्कतों के चलते शुरुआत में टीम को भेजने को लेकर संशय था, लेकिन बाद में खेलने की इजाजत मिली. उस समय जकार्ता का माहौल भारत के लिए काफी विरोधी था. स्थानीय भीड़ भारत के खिलाफ थी और फाइनल में 1 लाख से ज्यादा दर्शकों ने हमारी टीम का लगातार विरोध किया.
किस्सा: एक Cricket Match में तीन टीम क्यों और कैसे खेलीं?
फाइनल 4 सितंबर 1962 को साउथ कोरिया के खिलाफ हुआ, जो उस समय एशिया की सबसे मजबूत टीमों में से थी. पीके बनर्जी ने पहला गोल मारा, और जरनैल सिंह, जो चोट के बावजूद खेल रहे थे, उन्होंने हेडर स्कोर कर के भारत को जीत दिलाई.
भारत की इस कामयाबी के पीछे एक बड़ा नाम था – सैयद अब्दुल रहीम. वो उस समय भारतीय टीम के कोच थे, जिन्होंने भारतीय फुटबॉल को नई पहचान दी. कोच रहीम साहब खुद कैंसर से जूझ रहे थे, लेकिन उन्होंने आखिरी समय तक टीम का हौसला बढ़ाया. रहीम साहब को भारतीय फुटबॉल का Architect भी कहा जाता है. इस गोल्डन एरा के अपर एक फ़िल्म भी बनी – मैदान(Maidaan), जिसमे अजय देवगन ने कोच रहीम साहब की भूमिका निभाई थी.
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