पटना/वैशाली — बिहार की सियासत में एक नया विवाद सामने आया है. वैशाली लोकसभा से लोजपा (रामविलास) की सांसद बीना देवी और उनके पति, जेडीयू एमएलसी दिनेश सिंह, का नाम दो-दो अलग विधानसभा क्षेत्रों की वोटर लिस्ट में दर्ज पाया गया है.वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन के दौरान सामने आई इस जानकारी ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है.
Politics : थाने में पहुँचा सांसद-विधायक का विवाद!
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले एमएलसी दिनेश सिंह और सांसद बीना देवी का नाम साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र के साथ-साथ मुजफ्फरपुर विधानसभा क्षेत्र में भी दर्ज है.नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस मामले को उठाते हुए चुनाव आयोग और NDA गठबंधन पर तीखा हमला बोला है.तेजस्वी ने दोनों के वोटर आईडी नंबर और लिस्ट सार्वजनिक करते हुए सवाल उठाया कि एक व्यक्ति के नाम पर दो वोटर कार्ड आखिर कैसे बने.
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सांसद बीना देवी, जो मूल रूप से मुजफ्फरपुर जिले के साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र (संख्या 98) के पारू की रहने वाली हैं, का EPIC ID नंबर UTO1134543 है.वहीं, उनके पति और एमएलसी दिनेश सिंह का इसी क्षेत्र में EPIC ID नंबर REM0933267 दर्ज है.
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लेकिन विवाद यहीं खत्म नहीं होता.नए वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन में दोनों का नाम मुजफ्फरपुर विधानसभा क्षेत्र (संख्या 94) में भी दर्ज पाया गया है. इस क्षेत्र में बीना देवी का EPIC ID GSB1037894 है और दिनेश सिंह का UTO1134527 है. यह दोहरा पंजीकरण चुनावी नियमों के उल्लंघन के दायरे में आता है.
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बीना देवी ने फोन पर बातचीत में स्वीकार किया कि उनका घर साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र में है और वे यहीं से चुनाव लड़ती रही हैं.उन्होंने मुजफ्फरपुर विधानसभा क्षेत्र में नाम दर्ज होने को “किसी की गलती” बताया. लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या चुनाव आयोग से ऐसी गलती हो सकती है, तो उन्होंने सवाल का जवाब दिए बिना फोन काट दिया.
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एक और दिलचस्प पहलू यह है कि दोनों क्षेत्रों में दर्ज उम्र में अंतर है. साहेबगंज की लिस्ट में बीना देवी की उम्र 54 वर्ष है, जबकि मुजफ्फरपुर की लिस्ट में यह 55 वर्ष दर्ज है.इसी तरह, दिनेश सिंह की उम्र दोनों लिस्ट में 60 वर्ष ही है, लेकिन पते अलग-अलग हैं.
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तेजस्वी यादव ने इस मामले को गंभीर बताते हुए कहा, “जब सत्तारूढ़ दल के नेता ही दो-दो वोटर आईडी रखते हैं, तो चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठना लाज़मी है.” उन्होंने चुनाव आयोग से तुरंत कार्रवाई की मांग की है.
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अब देखना होगा कि इस मामले में आयोग क्या कदम उठाता है, क्योंकि जनप्रतिनिधियों के नाम पर दोहरी वोटर आईडी कार्ड बनना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े करता है.
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