आरा: नवरात्रि के पावन पर्व पर बिहार के आरा शहर में संस्कृति और भक्ति का अनुपम संगम देखने को मिला. वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय (वीकेएसयू) के एक विवादास्पद डांडिया आयोजन के ठीक विपरीत, संभावना आवासीय उच्च विद्यालय के शुभ नारायण नगर परिसर में आयोजित ‘अभिव्यक्ति कार्यक्रम’ ने मर्यादा और उत्साह का अनोखा उदाहरण पेश किया. यहां 400 छात्राओं ने बिहार की पारंपरिक झिझिया और गुजरात की प्रसिद्ध डांडिया नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस आयोजन ने न केवल सांस्कृतिक विविधता को उजागर किया, बल्कि यह भी संदेश दिया कि उत्सवों में मर्यादा का पालन कितना आवश्यक है.

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कार्यक्रम का शुभारंभ विद्यालय की प्राचार्या डॉ. अर्चना सिंह और नगर रामलीला समिति ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने संयुक्त रूप से किया. डॉ. सिंह ने अपने संबोधन में कहा, “हर बच्ची मां दुर्गा का रूप है और इसी रूप में संस्कार और संस्कृति दोनों की झलक दिखती है.” उनके शब्दों ने माहौल को और भी भक्तिमय बना दिया. छात्राओं ने अलग-अलग समूहों में विभाजित होकर अपनी प्रस्तुतियां दीं. एक ग्रुप ने झिझिया नृत्य के माध्यम से बिहार की लोक संस्कृति को जीवंत कर दिया. इस पारंपरिक नृत्य में सिर पर दीपकयुक्त घड़ियां संतुलित रखते हुए महिलाएं गोलाकार घेरे में नाचती हैं, जो शारदीय नवरात्रि से जुड़ा है. वहीं, दूसरे ग्रुप ने डांडिया स्टिक्स की टकराहट से गुजरात की ऊर्जावान परंपरा को प्रदर्शित किया.

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विशेष आकर्षण तब बढ़ा जब सभी 400 छात्राओं ने एक साथ डांडिया नृत्य किया. डांडिया स्टिक्स की जोरदार टकराहट से परिसर गूंज उठा, और दर्शक तालियों की गड़गड़ाहट से अभिभूत हो गए. यह दृश्य न केवल भक्तिरस से भरपूर था, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी बन गया. झिझिया की कोमलता और डांडिया की उत्साहपूर्ण लय का मिश्रण देखकर हर कोई दंग रह गया. कार्यक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया कि नवरात्रि जैसे पर्वों में लोक नृत्यों का महत्व अटल है, लेकिन इन्हें मर्यादा के दायरे में ही प्रस्तुत करना चाहिए.

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दूसरी ओर, वीकेएसयू में हाल ही में हुए डांडिया आयोजन ने अनुशासनहीनता और फूहड़ता के कारण विश्वविद्यालय की छवि को धूमिल कर दिया. वहां के आयोजन में उचित मर्यादा का अभाव देखा गया, जिसने सामाजिक बहस छेड़ दी. इसके विपरीत, संभावना स्कूल का यह प्रदर्शन एक मिसाल बन गया. यहां नृत्य के साथ-साथ संस्कारों की शिक्षा भी दी गई, जो समाज के लिए प्रेरणादायक है.

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‘अभिव्यक्ति कार्यक्रम’ ने अंततः यह संदेश दिया कि नवरात्रि में उत्सव और मर्यादा दोनों साथ-साथ चल सकते हैं. यही असली संस्कृति की पहचान है. संभावना स्कूल का यह आयोजन जहां एक तरफ भक्तिरस और लोक संस्कृति का अद्भुत संगम रहा, वहीं दूसरी तरफ इसने साबित कर दिया कि मर्यादा के भीतर रहकर भी किसी कार्यक्रम को यादगार बनाया जा सकता है. आरा के इस प्रयास से न केवल स्थानीय समुदाय प्रेरित हुआ, बल्कि पूरे बिहार में सांस्कृतिक जागरूकता का प्रसार हुआ. ऐसे आयोजनों से नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य हो रहा है.
