पटना: पटना का अटल पथ सोमवार को जाम, आगजनी और अफरा-तफरी का प्रतीक बन गया. भाई-बहन की संदिग्ध मौत के विरोध में उमड़े गुस्से ने प्रशासन की व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया. भीड़ ने सड़क पर टायर जलाए, गाड़ियों को आग के हवाले किया, पुलिस पर पथराव किया और यहां तक कि मंत्री मंगल पांडे की गाड़ी तक को नहीं बख्शा. हालत इतने बिगड़े कि पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी. नतीजा—7 पुलिसकर्मी घायल, एक एसआई की हालत गंभीर और अटल पथ घंटों ठप. लेकिन सवाल यही नहीं है कि सड़क पर हिंसा क्यों हुई. असली सवाल है कि यह गुस्सा आखिर पनपा क्यों?
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15 अगस्त को पटना के इंद्रपुरी में दीपक (5) और लक्ष्मी (7) की लाश कार से मिली. परिजनों का आरोप है कि बच्चों की हत्या हुई, उनके शरीर पर चोट और गला दबाने के निशान थे. मां ने साफ कहा – मेरे बच्चों को ट्यूशन टीचर ने मारा है, पुलिस लीपापोती कर रही है. जबकि पुलिस ने इसे हादसा बताया. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण स्पष्ट नहीं निकला. FSL रिपोर्ट का इंतजार बताया गया. लेकिन यह “जांच जारी है” वाली सरकारी भाषा स्थानीय लोगों के गुस्से को और भड़का गई.
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जनता का गुस्सा केवल बच्चों की मौत से नहीं, बल्कि पुलिस-प्रशासन की कार्यशैली से है. बार-बार यह आरोप लगना कि पुलिस लीपापोती कर रही है, सरकार की छवि पर सीधा प्रहार है. यही वजह है कि आक्रोशित भीड़ ने सरकारी गाड़ियों को जलाया, पुलिस पर पथराव किया और VIP तक को निशाना बनाया.
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लालू प्रसाद यादव का अटल पथ पर डेढ़ घंटे तक फंसे रहना प्रतीकात्मक है. यह इस बात का संकेत है कि जब राज्य के सबसे बड़े नेता तक सड़क पर असहाय फंसे दिख सकते हैं, तो आम आदमी की सुरक्षा किस भरोसे पर टिकी है?
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इस पूरे मामले में सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या सरकार केवल बयान देने और FIR दर्ज करने तक सीमित है? बच्चों की मौत का सच सामने लाने में देरी क्यों? पुलिस हर बार “जांच चल रही है” का राग अलापती है, लेकिन इंसाफ कब मिलेगा?
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अटल पथ पर हुआ यह बवाल सिर्फ एक दिन की घटना नहीं है. यह बिहार की उस व्यवस्था की तस्वीर है जहां इंसाफ की उम्मीद टूटते ही लोग सड़क को अदालत बना देते हैं और भीड़ न्याय की भाषा बोलने लगती है.
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सरकार को समझना होगा कि जनता का गुस्सा सिर्फ बच्चों की मौत पर नहीं, बल्कि उस व्यवस्था पर है जिसने उन्हें इंसाफ दिलाने की जगह हवाई फायरिंग और लाठीचार्ज का सामना करने पर मजबूर कर दिया.
