पटना: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में पिछले कुछ दिनों से चल रही खामोशी अचानक शुक्रवार रात से भयंकर राजनीतिक हलचल में बदल गई. लालू परिवार के भीतर बहन-बेटी रोहिणी आचार्य और तेजस्वी यादव के करीबी संजय यादव को लेकर विवाद ने सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में तहलका मचा दिया.
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घटना की शुरुआत हुई जब रोहिणी ने X (पूर्व ट्विटर) पर लगातार दो पोस्ट साझा किए. पहले पोस्ट में उन्होंने अपने पिता लालू प्रसाद यादव के बलिदान और वीरता को याद करते हुए लिखा कि जो लोग बड़े साहस और खुद्दारी के साथ समाज और परिवार की सेवा करते हैं, उनका सम्मान अनिवार्य है. इसके कुछ घंटे बाद उनका दूसरा पोस्ट आया, जिसमें उन्होंने साफ किया कि वे केवल बेटी और बहन के नाते अपने कर्तव्य और धर्म का पालन कर रही हैं. मुझे किसी पद या राजनीतिक महत्वाकांक्षा की लालसा नहीं है, मेरे लिए मेरा आत्मसम्मान सर्वोपरि है.
तेजप्रताप यादव ने भी बहन का समर्थन किया. उन्होंने कहा, “मैं उनकी गोद में खेला हूं. अगर मेरी बहन का किसी ने अपमान किया तो सुदर्शन चक्र चलाऊंगा. रोहिणी पूरी तरह सही हैं.” उनके ये शब्द परिवार और पार्टी के भीतर तनाव को और बढ़ा देने वाले साबित हुए.
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विवाद की वजह सामने आई ‘बिहार अधिकार यात्रा’ से. इस यात्रा में तेजस्वी यादव की बस की फ्रंट सीट पर संजय यादव बैठे दिखे. सोशल मीडिया पर वायरल हुई यह तस्वीर परिवार में नाराजगी की वजह बन गई. रोहिणी ने तुरंत अपने X अकाउंट को प्राइवेट कर लिया और यह संदेश दिया कि अब वे सार्वजनिक मंच पर सीधे विवाद में नहीं पड़ना चाहतीं.
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राजनीतिक जानकार मानते हैं कि तेजप्रताप का संजय यादव पर निशाना परिवार के भीतर पुराने मतभेद का परिणाम है. तेजप्रताप ने पहले भी पार्टी और परिवार में “जयचंद” की मौजूदगी पर सवाल उठाए थे. संजय यादव राज्यसभा सांसद हैं और तेजस्वी के राजनीतिक सलाहकार माने जाते हैं. उनकी भूमिका पार्टी को नई छवि देने और तेजस्वी को युवा नेता के रूप में स्थापित करने में अहम रही है.
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हालांकि रोहिणी ने बाद में डैमेज कंट्रोल की कोशिश की. उन्होंने पोस्ट में लिखा कि वंचितों और समाज के आखिरी पायदान पर खड़े वर्ग को आगे लाना ही लालू यादव का असली सामाजिक न्याय अभियान है.
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इस विवाद ने RJD के अंदरूनी समीकरणों को सार्वजनिक मंच पर ला दिया है. यह सिर्फ परिवार का मामला नहीं बल्कि राजनीतिक रणनीति, नेतृत्व और पार्टी के युवा चेहरे को लेकर चल रही लड़ाई का प्रतीक बन गया है.
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राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस घटना ने यह साफ कर दिया कि लालू परिवार में सिर्फ वोट बैंक या पद की राजनीति ही नहीं, बल्कि परिवारिक सम्मान और युवा नेतृत्व के सवाल भी अब गंभीर राजनीतिक चर्चा का हिस्सा बन गए हैं.