उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा यानी पूर्वांचल, भारतीय राजनीति का एक ऐसा क्षेत्र है जहां जातीय समीकरण, धार्मिक भावनाएँ, और विकास की अपेक्षाएँ. तीनों मिलकर राजनीति की दिशा तय करते हैं. यह क्षेत्र लंबे समय से नेताओं की प्रयोगशाला रहा है और देश की राजनीति को निर्णायक मोड़ देने की क्षमता रखता है.
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भौगोलिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य
पूर्वांचल आम तौर पर गोरखपुर, वाराणसी, आज़मगढ़, मऊ, बलिया, देवरिया, गाज़ीपुर, जौनपुर, भदोही, मिर्ज़ापुर, चंदौली, बस्ती, संतकबीरनगर, कुशीनगर जैसे ज़िलों को सम्मिलित करता है.
यह क्षेत्र:
- गंगा, घाघरा और राप्ती नदियों से सिंचित है
- सामाजिक रूप से अत्यंत जातीय विविध है
- पूर्वांचली भोजपुरी संस्कृति से समृद्ध है
राजनीतिक इतिहास: परिवर्तन के दौर
राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर डॉ. संजय त्रिपाठी (बीएचयू) के अनुसार, “पूर्वांचल ने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर मंडल-कमंडल राजनीति तक, हर दौर में सक्रिय भूमिका निभाई है.”
- 1960-80: कांग्रेस का दबदबा
- 1980 के बाद: मंडल राजनीति का असर – OBC राजनीति में उभार
- 1990 के बाद: भाजपा का उदय – कमंडल (राम मंदिर आंदोलन) ने सामाजिक ध्रुवीकरण किया
- 2000 के बाद: सपा-बसपा की मजबूत पकड़, लेकिन जातीय ध्रुवीकरण और वोट बैंक की राजनीति बढ़ी
- 2014 के बाद: मोदी लहर, और भाजपा की मज़बूत पकड़
जातीय समीकरण: राजनीति की धुरी
कास्ट एक्सपर्ट डॉ. राजीव यादव के अनुसार, “पूर्वांचल की राजनीति को बिना जाति के समझना, आधा सच जानना है. यहाँ जाति ही राजनीतिक रणनीति की धुरी है.”
मुख्य जातियाँ और राजनीतिक झुकाव:
| जाति | अनुमानित प्रभाव | राजनीतिक झुकाव (पारंपरिक) |
| – | | – |
| यादव | उच्च | सपा |
| भूमिहार-ब्राह्मण | उच्च | भाजपा/कांग्रेस |
| राजपूत | उच्च | भाजपा |
| कुर्मी | मध्यम | एनडीए/अपना दल |
| निषाद, मल्लाह | मध्यम | भाजपा/निषाद पार्टी |
| दलित | उच्च | बसपा/अब भाजपा |
| मुस्लिम | उच्च | सपा/कांग्रेस |
नोट: 2014 के बाद भाजपा ने गैर-यादव OBC और गैर-जाटव दलितों को साथ जोड़ने की रणनीति अपनाई.
धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव
गोरखनाथ मठ जैसे धार्मिक केंद्रों का प्रभाव स्थानीय राजनीति में गहरा है.
सीएम योगी आदित्यनाथ इसी धार्मिक-सांस्कृतिक प्रभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं.
सोशल साइंस विशेषज्ञ प्रो. रुचिरा श्रीवास्तव कहती हैं, “पूर्वांचल की राजनीति में धर्म और संस्कृति, जाति से कहीं अधिक गहराई से जुड़ी है. इसीलिए भावनात्मक मुद्दे अक्सर तर्क पर भारी पड़ते हैं.”
विकास और बेरोज़गारी: मतदाता की नई प्राथमिकताएँ?
पूर्वांचल में उद्योगों की भारी कमी है. पलायन यहाँ की सबसे बड़ी समस्या है.
प्रो. त्रिपाठी के अनुसार, “राजनीतिक दलों ने विकास की बातें कीं, लेकिन जमीन पर बदलाव धीमा रहा. युवाओं में अब जाति से ज़्यादा नौकरी और अवसर प्राथमिक मुद्दे बनते जा रहे हैं.”
हालिया विकास योजनाएँ:
- पूर्वांचल एक्सप्रेसवे
- एम्स (गोरखपुर)
- वाराणसी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट
इन विकास कार्यों ने भाजपा की छवि को मज़बूत किया है, लेकिन विपक्ष इन्हें “केंद्रित विकास” कहकर आलोचना करता है.
2024 लोकसभा के बाद का परिदृश्य
हाल की लोकसभा सीटों पर नजर डालें तो भाजपा और सहयोगी दलों ने पूर्वांचल की 90% से ज्यादा सीटें जीती हैं.
लेकिन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने जातीय गणित और महंगाई-बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को फिर से सामने लाने की कोशिश की.
पूर्वांचल की राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ परंपरा और परिवर्तन साथ चलते हैं. जाति और धर्म अब भी मजबूत आधार हैं, लेकिन नई पीढ़ी की आकांक्षाएँ धीरे-धीरे राजनीति को नई दिशा दे रही हैं.
“पूर्वांचल एक राजनीतिक तापमान बताने वाला थर्मामीटर है – यहाँ जो बदलाव आता है, वह पूरे उत्तर भारत की राजनीति को प्रभावित करता है.”
— डॉ. राजीव यादव
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