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Teenage में डिप्रेशन और सोशल विड्रॉल: Doctor Advice

Health Tips, Teenage, Depression, anxiety, social withdrawal,

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Teenage जीवन का एक संवेदनशील मोड़ होता है. जहां शरीर के साथ-साथ भावनाओं में भी जबरदस्त बदलाव आते हैं. पढ़ाई का दबाव, सामाजिक अपेक्षाएं, दोस्ती-रिश्तों का उलझाव और इंटरनेट की दुनिया – ये सब किशोरों में मानसिक तनाव को जन्म दे सकते हैं. आपका बेटा या पति किस Mental Pressure में हैं, ऐसे जानें

विशेषज्ञों के अनुसार आज भारत में हर 5 में से 1 किशोर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी किसी न किसी चुनौती से जूझ रहा है , जिनमें डिप्रेशन, एंग्जायटी और सोशल विड्रॉल प्रमुख हैं. AIIMS Doctor Advice: कौन-सी बीमारियों से रहें सावधान?

क्या है डिप्रेशन, एंग्जायटी और सोशल विड्रॉल?

डिप्रेशन (Depression)

यह केवल उदासी नहीं, बल्कि लगातार और गहरे स्तर पर दुख, रुचि की कमी और नकारात्मक सोच से जुड़ा मानसिक रोग है.
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीलिमा जोशी (AIIMS, दिल्ली) बताती हैं, “किशोरों में डिप्रेशन के लक्षण अक्सर ‘मूड स्विंग’ या ‘जिद’ समझ लिए जाते हैं, लेकिन अगर लक्षण 2 हफ्तों से ज़्यादा रहें तो यह चेतावनी है.”

एंग्जायटी डिसऑर्डर (Anxiety Disorder)

यह चिंता, भय और बेचैनी का असामान्य रूप है, जो रोज़मर्रा की गतिविधियों को प्रभावित करता है.
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. रवीश मेहरा (अपोलो हॉस्पिटल, दिल्ली) कहते हैं, “परीक्षा से डर, लोगों से मिलने से डरना या बार-बार घबराहट महसूस करना एंग्जायटी की ओर इशारा करता है.”

सोशल विड्रॉल (Social Withdrawal)

जब किशोर लगातार लोगों से कटने लगें, बातचीत से बचें, अकेले रहना पसंद करें – तो यह एक मानसिक दूरी का संकेत हो सकता है.

वरिष्ठ स्कूल काउंसलर सीमा श्रीवास्तव (दिल्ली पब्लिक स्कूल) बताती हैं, “सोशल मीडिया पर सक्रिय रहना और असल ज़िंदगी में एकांतप्रिय होना – यह आज का बड़ा पैटर्न है. इसे नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है.”

कैसे पहचानें लक्षण?

| लक्षण | सम्भावित संकेत
| भावनात्मक | उदासी, चिड़चिड़ापन, बेवजह रोना, खुद को दोषी मानना |
| शारीरिक | नींद न आना या बहुत ज़्यादा सोना, भूख की कमी या ज्यादा खाना |
| व्यवहारिक | दोस्तों से दूरी, पढ़ाई में गिरावट, आक्रामकता या चुप्पी |
| सोशल | बातचीत से परहेज, लोगों से कटना, ऑनलाइन तक सीमित होना |
| खतरनाक संकेत | आत्महत्या की बातें करना, खुद को नुकसान पहुंचाना (Self-harm) |

क्या हैं कारण?

  • पढ़ाई या परीक्षा का दबाव
  • बॉडी इमेज को लेकर असंतोष
  • सोशल मीडिया से तुलना और FOMO
  • पारिवारिक कलह या माता-पिता का तलाक
  • ब्रेकअप या दोस्ती में दरार
  • यौन पहचान (Gender identity) की उलझन

इलाज और सहयोग: क्या करें माता-पिता?

संवाद की शुरुआत करें:

जवाब देने के बजाय सुनिए , सवाल पूछिए, जज न करें. सीमा श्रीवास्तव: “किशोरों को लेक्चर नहीं, समझदारी और संवेदना चाहिए.”

प्रोफेशनल मदद लें:

काउंसलिंग: थैरेपी के ज़रिए किशोर खुद को बेहतर समझते हैं.
CBT (Cognitive Behavioural Therapy): नकारात्मक सोच को पहचानने और बदलने की प्रक्रिया.
जरूरत हो तो दवाइयां: साइकोलॉजिस्ट से सलाह के बाद ही.

डॉ. नीलिमा जोशी: “बिना शर्म या डर के मनोचिकित्सक से मिलना वैसा ही है, जैसे बुखार में डॉक्टर से मिलना.”

नियमित रूटीन बनाएं:

  • नींद, खानपान और एक्सरसाइज का संतुलन
  • मोबाइल/इंटरनेट का सीमित उपयोग
  • परिवार के साथ समय बिताना

किशोर खुद क्या करें?

  • अपने मन की बात किसी भरोसेमंद व्यक्ति से ज़रूर शेयर करें
  • ध्यान (Mindfulness), मेडिटेशन, जर्नलिंग जैसी आदतें अपनाएं
  • खुद को दोष देने के बजाय ‘ये फेज भी निकलेगा’ सोचें
  • अपने इमोशन्स को लिखें, छिपाएं नहीं

कब डॉक्टर से मिलना ज़रूरी है?

अगर ये लक्षण दो हफ्तों से ज्यादा हों:

  • लगातार गहरी उदासी या गुस्सा
  • खुद को नुकसान पहुंचाने के ख्याल
  • नींद/भूख में अत्यधिक बदलाव
  • स्कूल, परिवार या दोस्तों से दूरी

महत्वपूर्ण हेल्पलाइन और संपर्क

| सेवा | संपर्क नंबर / लिंक |
| — | – |
| iCall (TISS) | 9152987821 (24×7, हिंदी में भी) |
| Fortis Mental Health Helpline | +91 8376804102 |
| Snehi, Delhi | 9582208181 |
| Vandrevala Foundation | 1860 266 2345 / 1800 233 3330 |
| Government NIMHANS Helpline | 080 4611 0007 |

डिप्रेशन और एंग्जायटी कमज़ोरी नहीं , बल्कि मानव-मनोविज्ञान की एक प्रतिक्रिया है. किशोरों को प्यार, समझ और समय की ज़रूरत है – ताकि वे खुद को टूटने नहीं, निखरने दें.

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